सीमा श्रीवास्तव एवं डाॅ0 जी0 पी0 मिश्रा
राष्ट्रीय विकास में शिक्षक का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक, शिक्षा संगठन का हृदय है। परन्तु वर्तमान में शिक्षकों को अनेकानेक कार्यों का निर्वहन करना पड़ता है। जिसके कारण वह तनाव मुक्त तरीके से अपने कार्यों का संपादन नहीं कर पाता है।आधुनिक समय में उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों पर अपनी दक्षता का स्तर बढ़ाने का भारी दबाव है। जो उनके कार्य जीवन संतुलन को प्रभावित कर रहे हैं। कार्य जुड़ाव, संगठन के सदस्यों की अपनी कार्य भूमिकाओं के लिए स्वयं का उपयोग करना है। किसी भी काम में दृढ़ता से शामिल होकर समर्पण, महत्व, उत्साह, प्रेरणा, गर्व और चुनौती की भावना का अनुभव करना और अपने काम में पूरी तरह से एकाग्र होकर और खुशी से तल्लीन होना ही कार्य जुड़ाव है। जिससे समय जल्दी बीत जाता है और काम करने में आनन्द की अनुभूति होती है।शिक्षकों की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी समाज में सहयोग और एकता की भावना को बढ़ावा देती है, जो अंततः राष्ट्र को विकास की ओर ले जाती है परन्तु जब नौकरी मंे दबाव कर्मचारियों की क्षमताओं से अधिक हो जाता है, तो उनके काम के जुड़ाव/संलिप्तता में कमी के कारण अपने अधिकतम प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उक्त को ध्यान में रखते हुए शोधकत्री ने शिक्षा महाविद्यालयों में शिक्षक-प्रशिक्षकों के बीच कार्य जीवन संतुलन एवंकार्य जुड़ाव का स्तर के संबंध का अध्ययन किया और पाया किशिक्षा महाविद्यालयों में कार्यरत् शिक्षक-प्रशिक्षकों के कार्य जीवन संतुलन के सभी उपाय निम्न और उच्च कार्य जुड़ाव से प्रभावित होते हैं। पुरुष शिक्षक-प्रशिक्षकों के कार्य जीवन संतुलन में अंतर निम्न और उच्च स्तर के कार्य जुड़ाव का रहता है। इस प्रकार कि कार्य जुड़ाव के उच्च और निम्न स्तर वाली महिला शिक्षिका-शिक्षिकाओं के बीच कार्य जीवन संतुलन के पहलुओं में महत्वपूर्ण अंतर है।
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