डॉ॰ साधना पांडेय
किसी भी क्षेत्र में बच्चों के द्वारा अपनने बचपन में दी गई सेवा को बाल श्रम कहते हैं।
बाल मजदूर इंसानियत के लिए अपराध है जो समाज के लिए श्राप बनता जा रहा है तथा जो समाज के लिए श्राप बनता जा रहा है तथा जो देश के वृद्धी और विकास में बांधक के रूप में बड़ा मुद्दा है। अपने देश के समक्ष बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने रस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये है। समस्या के विस्तार और गंभीरता को देखते हुए एक सामाजिक-आर्थिक समस्या मानी जा रही है चेतना की कमी गरीबी और निरक्षरता को देखते हुए एक सामाजिक-आर्थिक समस्या मानी जा रही हैं चेतना की कमी गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गाे द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। बालश्रम को अपने गाँव-घर के भाषा में ये भी बोल सकते है। बाल-मजदूरी का मतलब यह होता है कि जिससे कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। हइस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने शोषित करने वाली प्रथा माना है। अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारोंश्रम अधिकार और बच्चों अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमें जनरिवाद प्रवेश कर गया। बालश्रम अभी भी कुछ देशों में आम है। बालश्रम जो है वो समाज के लिए अभिशाप भी है, क्योंकि बचपन, जिंदगी का बहुत खूबसूरत सफर होता है। बचपन मे न चिंता होती है ना कोई फिक्र होती हैं एक निश्चित जीवन का भरपूर आनंद लेना ही बचपन होता है, लेकिन कुछ बच्चों के बचपन में लाचारी और गरीबी की नजर लग जाती है, जिस कारण से उन्हे श्रम जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। बालश्रम वर्तमान समय में बच्चों की मासूमियत के बीच अभिशाप समान होता है।
Pages: 01-02 | 555 Views 170 Downloads