डॉ. विजय कुमार
महात्मा बुद्ध के विचारों ने भारतीय समाज में एक गहरी वैचारिक क्रांति को जन्म दिया। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था, कर्मकांड, अंधविश्वास और सामाजिक असमानता के विरुद्ध तर्क, करुणा और वैज्ञानिक दृष्टि को महत्व दिया। बुद्ध ने मनुष्य की श्रेष्ठता को जन्म से नहीं, बल्कि कर्म से निर्धारित माना और ‘आत्मदीपो भव’ का संदेश देकर मानव-केन्द्रित चिंतन को स्थापित किया। उनके उपदेशों को उनके अनुयायियों ने त्रिपिटकों में संकलित किया, जिसने बौद्ध दर्शन को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। दलित चेतना के उभार में बुद्ध के विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसने हाशिए के वर्गों को समानता, स्वाभिमान और सामाजिक मुक्ति का मार्ग दिखाया। डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाना बुद्ध के समानतामूलक चिंतन की प्रासंगिकता को प्रमाणित करता है। आज के समय में बौद्ध दर्शन का करुणा, अहिंसा और बंधुत्व का मार्ग समाज में मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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