डॉ० रंजु कुमारी
बिहार के शिक्षा क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय का योगदान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने किया, प्राचीन भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का भी एक महान शिक्षा केंद्र था। यह विश्वविद्यालय न केवल बिहार बल्कि संपूर्ण एशिया में ज्ञान और शिक्षा का प्रसार करने वाला केंद्र रहा।
नालंदा विश्वविद्यालय में धर्म, दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य, कला और भाषा सहित अनेक विषयों का गहन अध्ययन कराया जाता था। यहाँ हजारों विद्यार्थी भारत के विभिन्न प्रांतों के साथ-साथ चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया और श्रीलंका से भी आकर अध्ययन करते थे। शिक्षा व्यवस्था अनुशासन, शोध और वाद-विवाद की परंपरा पर आधारित थी, जिससे यह विश्वविद्यालय ज्ञान का जीवंत प्रयोगशाला बन गया।
नालंदा ने शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया। यहाँ विद्वानों और विद्यार्थियों के बीच संवाद की परंपरा ने वैश्विक ज्ञान-संवाद का मार्ग प्रशस्त किया। इसने बिहार को प्राचीन काल में विद्या की भूमि के रूप में पहचान दिलाई। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और महायान दर्शन के विकास में भी नालंदा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
यद्यपि 12वीं शताब्दी में आक्रमणों के कारण नालंदा का विनाश हुआ, फिर भी इसका प्रभाव भारतीय शिक्षा परंपरा और वैश्विक शैक्षिक धरोहर में आज भी जीवित है। आधुनिक काल में नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण बिहार के लिए गौरव का विषय है और यह शिक्षा, शोध तथा वैश्विक सहयोग का प्रतीक बनकर पुनः अपनी ऐतिहासिक धरोहर को जीवंत कर रहा है।
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