बिपिन प्रसाद मंडल
"आधुनिक भारत में गांधी के आर्थिक विचारों की पुनर्परिभाषा" शीर्षक के अंतर्गत यह अध्ययन महात्मा गांधी के आर्थिक दर्शन को वर्तमान भारतीय संदर्भ में नए दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है। गांधी का आर्थिक दृष्टिकोण मूलतः नैतिकता, आत्मनिर्भरता, ग्राम आधारित विकास और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग पर आधारित था। उन्होंने उपभोग पर नियंत्रण, श्रम की गरिमा और सामाजिक न्याय जैसे मूल्यों को आर्थिक सोच से जोड़ा। आधुनिक भारत, जहाँ तीव्र औद्योगिकीकरण, वैश्वीकरण और उपभोक्तावादी प्रवृत्तियाँ प्रभावी हैं, वहां गांधी के विचारों की पुनर्परिभाषा आवश्यक हो गई है। आज, जब भारत आर्थिक प्रगति के साथ-साथ पर्यावरणीय संकट, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता जैसे गंभीर प्रश्नों से जूझ रहा है, गांधी का दृष्टिकोण एक संतुलित और टिकाऊ विकास की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है। ग्रामोद्योग और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने से न केवल ग्रामीण रोजगार को बल मिलेगा, बल्कि शहरीकरण का बोझ भी कम होगा। आत्मनिर्भरता, जो आत्म-सम्मान और स्वाभिमान से जुड़ी है, आज 'वोकल फॉर लोकल' जैसे अभियानों के माध्यम से फिर से प्रासंगिक बन रही है। इस अध्ययन के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि गांधी के आर्थिक सिद्धांत न केवल अतीत की धरोहर हैं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक नैतिक, समावेशी और स्थायी विकास मॉडल का आधार बन सकते हैं।
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