अभिजीत कुमार सिंह
सदियों से चली आ रही विभाजन की परम्परा बंद हो और मनुष्य एक मनुष्य की तरह जीवित रह सके। जाति-धर्म के नाम पर, भषा-प्रांत के नाम पर, लिंग-भेद के नाम पर और विचारधारा के नाम पर, विभाजन अब बंद होने चाहिये। कमलेश्वर ने अपनी बात को पुख्ता तरीके से रखने के लिये सम-सामायिक घटनाओं का उल्लेख किया है जैसे कोसोवो, पूर्वी तिमोर, सोमालिया, कश्मीर आदि जगहों पर हो रहे आंदोलन और प्रतिहिंसा। इसके मूल में जाने की लेखक ने कोशिश की है तो पाया है कि कहीं न कहीं किसी अन्य ताकत ने ये पहचान के संकट खड़े किये और फिर उसके बाद जब जनता विभाजित हो गयी तो उसका फायदा उठाया, वरना कोई कारण नहीं है कि दो अलग पहचान के लोग साथ नहीं रह सकते।
कमलेश्वर को शायद पेशेवर इतिहासकारों और राष्ट्रीय इतिहासलेखन की इस समस्या का अहसास था, जब लगभग तीन दशक बाद कितने पाकिस्तान का प्रकाशन हुआ। वास्तव में, कुछ राष्ट्रीय इतिहासलेखनों पर 1990 के दशक में ही युवा इतिहासकारों द्वारा विवाद खड़ा किया जा चुका था, खास तौर पर सबाल्टर्न स्टडीज समूह से जुड़े इतिहासकारों द्वारा। कमलेश्वर ने मई 1990 में कितने पाकिस्तान लिखना शुरू किया था और इसे पूरा करने और अंततः प्रकाशित करने में 10 साल लग गए, यह ज्ञात नहीं है कि उन्होंने इसे नई सहस्राब्दी की शुरुआत के साथ प्रकाशित करने की योजना बनाई थी या नहीं। उपन्यास के पहले संस्करण पर एक नोट में, कमलेश्वर स्पष्ट रूप से कहते हैं यह उपन्यास मन के अंदर चल रही बहसों का परिणाम है। सब कुछ दशकों तक चलता रहा।
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