कृष्णकांत गोस्वामी, अजय कुमार घोष
1857 की क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम संगठित प्रयास के रूप में इतिहास में दर्ज है। दतिया, जो प्रत्यक्ष रूप से इस क्रांति का मुख्य केंद्र नहीं था, फिर भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। इस क्रांति के बाद दतिया में राजनीतिक चेतना के बीज अंकुरित हुए, जिसने आगे चलकर राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई। दतिया में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी, जिससे स्थानीय नेतृत्व उभरा और जनता में स्वतंत्रता की भावना प्रबल हुई। अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के प्रसार और समाज सुधार आंदोलनों ने भी इस चेतना को सशक्त किया। गांधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों ने भी इस क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम की भावना को और प्रबल किया।
20वीं शताब्दी के दौरान, दतिया ने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। यहाँ के लोगों ने सत्याग्रह और विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष व्यक्त किया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात्, दतिया का भारत में विलय हुआ, जो भारतीय गणराज्य के सुदृढ़ीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि 1857 की क्रांति ने दतिया क्षेत्र में राजनीतिक जागरूकता और राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह घटनाएँ यह भी दर्शाती हैं कि छोटे रियासती क्षेत्र भी राष्ट्रीय संघर्ष का अभिन्न अंग रहे और उन्होंने आधुनिक भारतीय राजनीति के विकास में योगदान दिया।
Pages: 184-192 | 89 Views 18 Downloads