Abstract:
वैदिक काल से ही महिलाएं भारतीय समाज एवं परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती रही है । महिलाओं को परिवार का केंद्र बिंदु माना गया है । वह अपने बच्चों के साथ-साथ संपूर्ण परिवार को संचालित एवं संपोषित करती आ रही हैं । वह परिवार के साथ-साथ भारतीय समाज के संचालन में भी अपनी भूमिकाओं का निर्वहन निष्ठा पूर्वक करती है । महिलाओं ने अपनी भूमिका का किसी न किसी रूप में अवश्य निर्वहन किया है जो कि परिवार, समाज तथा राष्ट्र के निर्माण एवं संचालन में सहयोगी साबित हुआ है । महिलाओं में आत्मसंयम, आत्मबल, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता का गुण उन्हें अपने दायित्वों को निभाने तथा पूर्ण करने हेतु मजबूत बनाता है । प्राचीन समय ही से ही महिलाएं हमारे समाज एवं देश की उन्नति में अपना सार्थक एवं अमूल्य योगदान प्रदान करती आ रही है । विकास के प्रत्येक क्षेत्र में शिक्षा, कला, विज्ञान, कृषि, संस्कृति तथा व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाओं का अविश्वसनीय योगदान रहा है । भारत में महिलाओं की भूमिका एवं सामाजिक स्थिति का जो परंपरागत दृष्टिकोण था वह वर्तमान समय में परिवर्तित हो रहा है । देश के विकास में महिला एवं पुरुषों की समान सहभागिता आवश्यक है । महिलाओं के जीवन को सुरक्षित एवं भविष्य उज्जवल रखने के लिए समाज में बराबर का दर्जा मिलना भी अत्यंत आवश्यक है । महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु महिलाओं को घरेलू कामकाज एवं कौशल को स्वरोजगार के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे महिलाओं की स्थिति समाज में सुदृढ हो सके । इस स्थिति को मजबूत करने के लिए कुछ स्वयं सहायता समूह महिलाओं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने हेतु उनको प्रोत्साहित करने में योगदान देते हैं । महिलाओं को गृह विज्ञान से संबंधित घरेलू जानकारी एवं कार्यों को स्वरोजगार के रूप में अपनाकर सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूह अपनी सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं । यह शोध पत्र गृह विज्ञान की सहायता से महिलाओं के लिए स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने तथा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में स्वयं सहायता समूह की कार्यप्रणाली, उनका प्रभाव इत्यादि के विश्लेषण पर आधारित है ।