डाॅ0 राजकुमार
भारतेन्दु के हृदय में अपने देश तथा समाज के प्रति असीम अनुराग था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट तथा विचारों की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध होने के बाद भी भारतेन्दु जी ने विदेशी शासन की खुलकर आलोचना की है। किसी भी बन्धन की परवाह न करते हुए भारतेन्दु जी ने अंग्रेजी राज्य को राक्षसी राज्य की संज्ञा देते हुए कहा है -
‘‘उपजा ईश्वर कोप से,
औ आया भारत बीच।
छार खार सब हिन्द करूँ मैं,
तो उŸाम नहिं नीच।
मुझे तुम सहज न जानो जी,
मुझे इक राक्षस मानो जी।’’
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