डॉ. संतोष कुमार यादव
बिहार में खुले में शौच की प्रथा एक गंभीर सामाजिक, स्वास्थ्य, और पर्यावरणीय समस्या है जो राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है। इस प्रथा के पीछे मुख्य कारणों में शिक्षा की कमी, गरीबी, और सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ शामिल हैं। लोग खुले में शौच को अधिक स्वाभाविक और पारंपरिक मानते हैं, जिसके कारण शौचालयों के निर्माण और उपयोग के प्रति उदासीनता देखी जाती है। खुले में शौच का पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह न केवल जल स्रोतों को दूषित करता है, बल्कि भूमि की उर्वरता को भी प्रभावित करता है। जल प्रदूषण के कारण जल जनित बीमारियाँ जैसे हैजा, टाइफाइड और दस्त फैलते हैं, जो ग्रामीण समुदायों के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त, खुले में मल-मूत्र का सड़ना वायु प्रदूषण का कारण बनता है, जिससे स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्त बनाना था। इस अभियान के तहत बिहार में भी कई शौचालय बनाए गए और जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए, लेकिन समस्या का पूर्ण समाधान अब तक नहीं हो पाया है। बिहार में खुले में शौच की समस्या को हल करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान, शौचालय निर्माण के लिए आर्थिक सहायता, और समुदाय की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। इसके लिए सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव लाना भी जरूरी है ताकि लोग शौचालय का उपयोग करने के महत्व को समझें और इसे अपनी दैनिक जीवनशैली का हिस्सा बनाएं।
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