मानव सभ्यता का उदय और प्रारंभिक आश्रय प्रकृति अर्थात् वन-वृक्ष ही रहे हैं। हमारी मूल संस्कृति आरण्यक ही रही है तथा वृक्ष व वनस्पति को हम सम्मान देते रहे हैं क्योंकि प्रारंभ से लेकर आज तक वृक्षों व वनस्पतियों ने हमारे जीवन की प्रत्येक छोटी-बड़ी आवश्यकताओं को न केवल पूर्ण किया है बल्कि अपने विशिष्ट गुणों से वातावरण को स्वच्छ व हमारे शरीर को स्वस्थ रखकर संपूर्ण मानव-जाति पर उपकार किया है। यही कारण है कि हम अपने पादपों में देवताओं का निवास मानते हैं। इन्हीं में प्रकृति देवी का प्रधान अंश मानी जाने वाली है मांगलिक और पवित्र तुलसी । संस्कृत में तुलसी का अर्थ है - अद्वितीय या बेजोड़ । इसे ही फनममद व िभ्मतइे भी कहा गया है। वनस्पति शास्त्र की भाषा में इसे व्बपउनउ ैंदबजनउ (ओसिमम सेन्क्टम) कहा जाता है। ये धरती की ऐसी पावन अमृत-जड़ी है, जो न केवल पाप दूर करने वाली है, बल्कि रोगनाशक और सौन्दर्यवर्धक औषधि भी है। इसकी जड़ में सभी तीर्थ, मध्य में देवी-देवता और ऊपरी शाखाओं में वेद स्थित है। घर के आंगन में तुलसी का पौधा न सिर्फ वातावरण को पवित्र कर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता हैं बल्कि घर में निवास करने वालों को अच्छे स्वास्थ्य और मन की शांति का वरदान देता है। उसकी पत्तियों को छूकर बहने वाली हवा घर में कीटाणुरोधी और रोगनाशक गुणों का प्रसार करती है।